Class 10th Hindi हिन्दी संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या NCERT SOLUTION HINDI

प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश का संदर्भ प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए- (3) 

(1)

ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा तें नाहिन मन अनुरागी ।

पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।

 ज्यों जल माह तेल की गागरि, बूँद न ताको लागी ।


संदर्भ - प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज' के पाठ 'पद' से लिया गया है। इसके रचयिता 'सूरदास' हैं। प्रसंग- प्रस्तुत पद में गोपियाँ उद्धव को व्यंग्य के माध्यम से यह जताना चाह रही हैं कि तुमने कभी प्रेम किया नहीं है इसलिए तुम हमारे प्रेम की अनुभूति नहीं कर सकते हो। भावार्थ- गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि हे उद्धव! तुम बहुत बड़े भाग्यवान हो जो तुम अभी तक प्रेम के बंधन में बंधने से अछूते रह गए। तात्पर्य यह है कि तुम बड़े अभागे जो तुम्हारा मन कृष्ण के प्रेम में लिप्त नहीं हो पाया जिस प्रकार कमल का पत्ता जल के भीतर रहता है लेकिन उस पर पानी का दाग जरा भी नहीं लग पाता। जैसे जल में तेल से भरी गगरी रहती है तो उस पर पानी की एक बूँद भी नहीं टिकती पाती। उसी प्रकार कृष्ण के साथ रहते हुए भी तुम उनके प्रेम से अछूते रहे हो। तुमने प्रेम की नदी में पाँव तक डुबाया नहीं और न ही तुम्हारी दृष्टि कृष्ण के सौन्दर्य रूपी पराग पर मुग्ध हो पाई। आशय यह है कि तुम अपनी चतुराई के कारण प्रेम के संबंध में कुछ नहीं जानते। परंतु हम तो अबलाएँ और इनती भोली है कि कृष्ण के प्रेम में उसी तरह लिप्त हो गई जिस तरह चींटी गुड़ में लिपट जाती है


              2

मधुप गुनगुना कर कह जाता कोन कहानी यह अपनी,

मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी । 

इस गंभीर अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास, 

 यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य - मलिन उपहास |

(3)
उत्त्तर :-
संदर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'आत्मकथ्य' पाठ से लिया गया है। इसके कवि जयशंकर प्रसाद हैं। प्रसंग- इसमें बताया गया है कि इस संसार में अनेक दुःखी करने वाली घटनाएँ हुई हैं उन्हें आत्मकथा में लिखना उचित नहीं है। भावार्थ - कवि प्रसाद कहते हैं कि भारे गुंजार करके पता नहीं अपनी कौन-सी दुःखपूर्ण कथा सुनाना चाहते हैं। आज पता नहीं कितनी पत्तियाँ सूखकर डालियों से गिर रही हैं। इस असीमित नीले आसमान के नीचे कितने ही दुखद वृत्तान्त लिखे गए हैं, उन लिखने वालों का लोगों ने मजाक ही बनाया है। क्या तुम यह सब जानने पर भी मुझसे अपनी दुर्बलताओं का वर्णन आत्मकथा में करने को कहते हो। मेरी खाली गगरी जैसी जिन्दगी की आत्मकथा को पढ़कर क्या तुम सुखी होंगे।

3.
नाथ संभुधनु भंजनिहारा, होइहि केउ एक दास तुम्हारा ।।
आयिसु काह कहिअ किन मोही, सुनि रिसाई बोले मुनि कोही ।।
उत्तर — 
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'क्षितिज' के पाठ राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास है।
प्रसंग - शिव-धनुष भंग होने के बाद जब परशुराम खंडित धनुष देखकर आपे से बाहर हो जाते हैं और धनुष भंग करने वाले का पता पूछते हैं तब उनसे हुए राम के विनय वचन लक्ष्मण के व्यंग्य वचनों को यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
भावार्थ - क्रोधित परशुराम को राम उत्तर देते हुए कहते हैं कि हे नाथ! शिवजी का धनुष तोड़ने वाला आपका ही कोई एक दास होगा। आपकी क्या आज्ञा है, मुससे कहिए। यह सुनकर क्रोधी स्वभाव वाले मुनि गुस्से में बोलते हैं- सेवक तो वही है जो सेवा का कार्य करता है। शत्रु के समान कार्य करने वाले के साथ तो लड़ाई ही की जानी चाहिए। हे राम! सुनो, जिसने भी यह शिवधनुष तोड़ा है वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है।

4 बादल, गरजो!
   घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
   ललित ललित, काले धुंघराले,
   बाल कल्पना के-से पाले,
    विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
उत्तर – 
संदर्भ:- यह पद्यांश हमारी पाठ्य - पुस्तक की ' उत्साह' कविता से लिया गया है | इसके कवि  सूर्यकांत त्रिपाठी  निराला है | 
प्रसंग - इसमें कवि बादलों को गर्जना करने हेतु उनका आह्वान करता है|
भावार्थ –  कवि कहते हैं कि हे बादलो ! तुम घनघोर गर्जना से समस्त आकाश को भर दो और सघन रूप में चारों ओर छा जाओ। तुम बच्चे की कल्पना की तरह विस्तृत बन जाओ और बिजली की सी सुन्दरता अपने हृदय में भरकर नवीन जीवन का संचार करने वाले बन जाओ। तुम अपने कठोर रूप को छिपा लो और नवीन कविता का वातावरण सभी ओर बना दो।

5) फसल क्या है? और तो कुछ नहीं है वह नदियों के पानी का जादू है वह हाथों के स्पर्श की महिमा हैं भूरी-काली संदली मिट्टी का गुण धर्म है

उत्तर -


संदर्भ-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक की ' फसल' कविता से लिया गया है। इसके कवि नागार्जुन हैं।


प्रसंग - यहाँ बताया गया है कि फसल किन-किन के सहयोग से पैदा होती है। भावार्थ - कवि स्वयं प्रश्न करते हैं कि फसल क्या है और उसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि फसल और कुछ नहीं होती है यह तो अनेक नदियों के पानी का जादू है। यह फसल बहुत से किसानों के हाथों की मेहनत का गौरव है। अनेक तरह की भूरी, काली या संदली मिट्टी की विशेषता के आधार पर फसल पैदा होती है। । काव्य सौन्दर्य -

(1) फसल पैदा होने के तत्वों को बताया गया है।

(2) सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है |













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